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प्यार की दास्तान

प्यार की दास्तान

बात उन दिनों की है,जब समाज में प्रेम विवाह को हेय और मनोरंजन की दृष्टि से देखा जाता था। अगर कोई लड़के लड़की को एक साथ बात करते भी देखा लेता वो पूरी कालोनी में नमक मिर्च लगाकर फैलाता।

मेरी कालोनी में मेरी उम्र के  लड़के लड़कियों की संख्या अधिक थी। उनमें से कुछ साथ साथ खेलते व स्कूल भी साथ साथ जाते थे।
रीना मेरी कालोनी में रहती थी,वो मेरी क्लास में पढ़ती थी। वह मेरे साथ खेलती भी  थी।

रीना के एक बड़े भाई थे अमित। वह उससे ज्यादा बड़े नहीं थे। उस समय हम दोनों बहुत छोटे थे। प्यार व्यार की बातें ज्यादा समझ में नहीं आती थी। कुछ दिनों से कालोनी में  अमित भईया और रुही दीदी के चर्चे हो रहे थे।लोग कह रहे थे वे दोनों साथ में पिक्चर देखने जाते हैं, पार्क में हाथों में हाथ डालकर बैठे रहते हैं। मुझे लगता था कि जैसे मैं और मेरे दोस्त आपस में खेलते हैं और साथ में सभी लड़के लड़कियां स्कूल में बातें करते हैं तो दीदी और भैया जी एक साथ पिक्चर देखने चले गए तो क्या हुआ। यह बात मेरी समझ से परे थी।
कुछ कुछ समय बाद पता चला कि रिया दीदी के घर वालों ने अपना मकान चेंज कर लिया है।  कुछ दिनों बाद कॉलोनी में इस बात की चर्चा खत्म हो गई।
मैंने 5thक्लास के बाद दूसरे स्कूल में एडमिशन ले लिया । हमारी कक्षाएं बढ़ती गई और पढ़ाई का बोझ भी बढ़ता गया। उस समय लड़कियों को ज्यादा घर से बाहर नहीं निकलने दिया जाता था ,अतः मेरा रीना से मिलना कम हो गया। घर में कभी पूजा या कोई प्रोग्राम का आयोजन होता तो वो अपनी मां के साथ आती थी या मैं भी कभी-कभी उसके घर चली जाती थी।

मैं ग्रेजुएशन कर रही थी। रीना का विवाह हो चुका था अब वो दूसरे शहर में शिफ्ट हो चुकी थी।
एक दिन उसकी मां मेरे घर आईं ,मेरी मां को अमित भैया की शादी का कार्ड दिया। मैंने कार्ड पढ़ा  तो मेरी आंखें आश्चर्य से खुली रह गई, उसमें वधू की जगह पर रिया का नाम लिखा हुआ था। मुझे तो लगा था कि ये कोई और रिया होगी।
उन दिनों लड़की की बारात में औरतें नहीं जाया करती थीं। बारात में पापा और भाई गए थे ।वे घर आकर बताने लगे कि यह हमारे  कॉलोनी वाली ही  रिया है। लेकिन मेरे मन में यह बात उथल-पुथल मच रही थी कि वे लोग तो एक शहर में रहते भी  नहीं हैं। लैंडलाइन फोन भी कालोनी के एक या  घरों में होता था उसी से इमरजेंसी में पूरी कॉलोनी के लोग काम चलाते थे।।तो उन की दास्तान इतनी आगे कैसे बढ़ गई।
कुछ दिन बाद मम्मी के साथ में  बहू की मुंह दिखाई की रस्म में गई थी तब मैंने भी रिया दीदी को देखा । अब मैं बड़ी हो चुकी थी लेकिन प्यार की ये दास्तान मेरे समझ में नहीं आई थी कि उन लोगों की यह दास्तान यहां तक कैसे पहुंची थी।


स्नेहलता पाण्डेय 'स्नेह'


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4 Comments

Shalini Sharma

05-Oct-2021 01:29 PM

Beautiful story

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Fiza Tanvi

04-Oct-2021 03:32 PM

Good

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Swati chourasia

01-Oct-2021 05:12 PM

Very nice

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